दायरे
दायरे
सभी कहते हैं दायरों को तोड़कर
उन्मुक्त गगन में उड़ने की कोशिश
पर्वतों पर चढ़ने की कोशिश
और नभ को छूने की कोशिश करना चाहिए।
पर दायरे मुझे भाते हैं,
यह दायरे नही कभी मुझे उलझाते हैं,
यह दायरे नही कभी मुझे भरमाते हैं,
इन दायरों का सम्मान करते हुए
हर वक़्त कुछ नया करने की कोशिश
मुझे स्वयं को मापने का अवसर दे जाते हैं।
इन दायरों में रहते हुए जब कभी
मेरा मन भटक जाता है।
यह मुझे मेरे स्व से परिचय कराते हैं,
और धरा पर मेरे होने का उद्देश्य मुझे समझाते हैं।
इन दायरों में रहकर मैं नही गुजरती कभी
उस अनदेखे अनजाने राह से
जहाँ रुसवाइयाँ, तन्हाइयाँ या बेवफ़ाइयाँ
मेरी जिन्दगी का हिस्सा बनें।
ये दायरे मेरी मंजिल और लक्ष्य का
अक्सर मुझे याद दिलाते हैं।