दाता
दाता
रो - रो के कह रही हूँ
इस ग़म में घुल रही हूँ
ऐ दुनिया बना ने वाले
मैं तुझसे लड़ रही हूँ!
दुनिया का मंच मेला
अजब है तेरी लीला
ये जात - पात क्या है
रंग - रूप भेद क्या है
जाति विवाद क्या है
हिन्दु - मुस्लिम विरोध क्या है
इंसा को इंसा से है बाँटा
रस्मों रिवाज ऐसा
क्या तेरा ही है बनाया!
दुनिया का मंच मेला
अजब है तेरी लीला
दंगा - फसाद हर दिन
हर दिन नई लड़ाई
है खून का प्यासा
यहाँ आपस में भाई-भाई
विधी के ऐ विधाता
सच झूठ का ये नाता
कब तक यूँ हीं चलेगा
तू क्यों नहीं बताता!
दुनिया का मंच मेला
अजब है तेरी लीला
किस्तों में कट गया है
हिस्सों में बँट गया है
मानव ये आज का
किस रंग में रंग गया है
कपटी है हर कोई फिर
कोमल हृदय क्यों बनाया
पाठ पढ़ाया मानवता का
तो हिंसा क्यों सिखाया!
दुनिया का मंच मेला
अजब है तेरी लीला
न तुझसे लड़ूँगी
न तुझसे कहूँगी
क्षमा कर दे दाता
यही विनती करूँगी
दुनिया का मंच मेला
अजब है तेरी लीला!