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Laraib Khan

Others

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Laraib Khan

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मजदूर

मजदूर

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ये रास्ता

और कितना लम्बा होगा

तेज चमकती धूप

साथ - साथ भूख

चलते - चलते

हुई रात 

कब सवेरा होगा,

मैं अकेला नहीं

कितने कारवाँ हैं,

दर्द से टूटा

सड़क पे लेटा

इंतजार में

गाँव शायद

आ गया होगा,

चप्पल टूट गया

पाँव के छाले भी

अब कराहने लगे

घाव बन के

बहने लगे,

घर और

कितना दूर होगा,

राह न देख

मैं आ गया

परीशान क्यों

हैरान क्यों, 

सफेद कफन पे

वीरान क्यों,

मांँ

कई दिनों तक 

आँगन तेरा अब

सूना न होगा,

दूर था

मजबूर 

मजदूर था,

इससे ज्यादा

हम गरीब़ों पे

जुल्म 

और क्या होगा? 

ये रास्ता

और कितना?



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