मजदूर
मजदूर
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ये रास्ता
और कितना लम्बा होगा
तेज चमकती धूप
साथ - साथ भूख
चलते - चलते
हुई रात
कब सवेरा होगा,
मैं अकेला नहीं
कितने कारवाँ हैं,
दर्द से टूटा
सड़क पे लेटा
इंतजार में
गाँव शायद
आ गया होगा,
चप्पल टूट गया
पाँव के छाले भी
अब कराहने लगे
घाव बन के
बहने लगे,
घर और
कितना दूर होगा,
राह न देख
मैं आ गया
परीशान क्यों
हैरान क्यों,
सफेद कफन पे
वीरान क्यों,
मांँ
कई दिनों तक
आँगन तेरा अब
सूना न होगा,
दूर था
मजबूर
मजदूर था,
इससे ज्यादा
हम गरीब़ों पे
जुल्म
और क्या होगा?
ये रास्ता
और कितना?
