दास्तां
दास्तां


जब मिले थे हम और तुम
सावन की उस भरी बरसात में
हम भी कभी आया करते थे
अल्हड़ पवन की भांति एकांत में !
याद करो भला उस पल को भी -
उस सावन की रात में हम
पलकों पलकों में बातें करते
उस सावन की रात में हम
जुल्फों के साथ भी खेला करते
उस सावन की रात में हम
खामोशी से सब कुछ कहते
उस सावन के रात में हम
तुम को दिल की सारी
वेदना कहते
उस सावन की रात में हम
तुम को अपना प्रिय समझकर
>सारी रातों की संवेदना कहते
उस सावन की रात में हम
मेरी दास्तां छोटी ही है
आ भी जाओ उस सावन में
उसी पुरानी राहों में
जब भीगते हम दोनों थे
सावन की भरी बरसात में
आओ उसी रास्ते पर
फिर हम साथ ,
मनाएं सावन की
अपनी पुरानी अल्हड़
प्रेम भरी बरसाती होली !
तभी फिर हम कह सकते हैं-
सावन की भरी बरसात में
हम भी कभी आया करते थे
अल्हड़ पवन की भांति एकांत में..!!