दास तुम्हारा
दास तुम्हारा
एक तमन्ना मेरे मन की, तेरी बगिया का ही फूल बनूँ।
तेरी चौखट पर जब भी आऊँ ,तेरे चरणों की ही धूल बनूँ।।
यह दिल भी रोशन तुमसे ही होता, तुम बिन हर दम ये रोता।
मिलने की चाहत है रहती, अखियाँ रोतीं, कुछ कह नहीं पाता।।
यादों के सहारे ही दिन ये कटते, तुम तो मेरे अंग संग बन रहते।
मैं अज्ञानी फिर भी समझ न पाता, सपने में ही दर्शन तुम देते।।
तुम तो लुटाते रुहानियत दौलत, देते सब को इज्जत, शोहरत।
अहंकार ने भी साथ न छोड़ा, फिर भी देते सबको मोहलत।।
मैं मुरीद, नामुराद ठहरा, आंखों से अंधा, कानों से बहरा।
रहबर बन सदा साथ निभाते, संबंध है सब से कितना गहरा।।
डूबती कश्ती के तुम हो सहारा, तुम बिन अब कौन है हमारा।
मोह-माया भंवर से पार लगा दो, कृपा करना है काम तुम्हारा।।
सारथी बन अब मुझे पार लगाओ, श्री कृष्ण बन अर्जुन को है तारा।
"नीरज, की औकात नहीं है, फिर भी कहता हूँँ ,"मैं दास, तुम्हारा।।