चुपचाप
चुपचाप
उनके दीदार को पल पल तरसती है
ये आंखें उनकी यादों में बरसती है।
वहीं जाकर,
उसी मोड़ पर खड़ा रहता हूं रोज,
सुना है वो रोज़ वहीं से गुज़रती है।
जहां मिला करते थे हम हर शाम,
वो पेड़ तले आंखों में गुमनाम।
आज भी वहीं तेरा इंतज़ार करते है,
मैं और मेरी तन्हाई बैठें चुपचाप।

