चंदन माटी को माना
चंदन माटी को माना


लहू उछाल मारता रग में
चले पहन बसंती बाना
मन में बसती मां भारती
चंदन माटी को माना।।
घात लगाकर गिद्ध बैठते
मन में कलुष भरा उनके
छुप-छुप कर ये वार करे हैं
सगे बने ये कब किनके
पांचजन्य सी शंखनाद कर
वीर भारती बढ़ जाना।
मन में बसती मां भारती
चंदन माटी को माना।।
प्राण हथेली पर रखते हैं
जन्मभूमि के मतवाले
शेरों सी हुंकार भरे जब
अरिदल शस्त्र सभी डाले
वज्र समान हौसले रखना
पूरा करना जो ठाना
मन में बसती मां भारती
चंदन माटी को माना।।
हृदय बसा कर देशप्रेम को
हँसते-हँसते बढ़े चले
नभ में नाम लिखाते अपना
आन-बान संकल्प फले
वसुधा के ये रत्न अनोखे
जाने उसको महकाना।
मन में बसती मां भारती
चंदन माटी को माना।।