साया
साया
अँधेरे में कहीं छुपा है वो साया
जिसका ड़र मेरे मन में है समाया
कामाग्नि में जलता जिसका मन
क्रीड़ा-वस्तु है जिसके लिए मेरा तन
मेरी पीड़ा भला वो क्या जाने?
आकुल है जो प्यास अपनी बुझाने
मेरा करूण अनुरोध वो क्यूँ माने?
चाहे जो बस अपना मन बहलाने
भोग-वस्तु नहीं मैं एक नारी हूँ
अबला नहीं मैं शक्ति की पुजारी हूँ
अत्याचार न सहूँगी, न होने दूँगी
अपने ड़र पर आप ही मै विजय करूँगी
साया न कोई मुझे कभी स्पर्श करने पाए
मेरे सम्मान की बलि न कभी चढ़ने पाए
मै सक्षम हूँ अब आत्मरक्षा करने
साया भी लगा है अब मुझसे ड़रने।