अपनी मंजिलें-अपनी दौड़
अपनी मंजिलें-अपनी दौड़
जिदंगी की खरोंचों से ना घबराइये जनाब,
तलाश रही है ये जिदंगी खु़द निखर जाने को,
ना मेरी किसी से ईर्ष्या ना किसी से द्बेष,
मेरी अपनी मंजिलें, मेरी अपनी दौड़,
यारो खु़द का वेस्ट व्हर्जन बनना है,
किसी की काँपी बनना नहीं अपना काम,
ये ईर्ष्या, और द्बेष में नहीं है अपना विश्वास।
जब राहों में मुश्किलें बढने लगें,
और लोग भी आपसे जलने लगें,
तब घबराना नहीं मेरे यार,
बस इतना सोचना कि अब सच
तुम्हारे कदम मंजिल की ओर बढ़ने लगे।
