मेरी नौकरी-मेरा मान
मेरी नौकरी-मेरा मान
मेरी नौकरी मुझे बडी़ ही भाती,
बडे़ से बड़े डॉक्टर से मिलवाती,
सुबह से शाम तक चक्कर कटवाती,
एक क्लीनिक से दूसरे अस्पताल घुमाती,
हर छोटे से बडे़ डाँक्टर से मिलवाती,
बिना मिले हमारा एक काम ना होता,
हमारे मिले बगैर मरीज का भला ना होता।
डाँक्टर, मरीज की सेवा ही हमारा ध्येय होता,
बिना हमारे डाँक्टर को नयी दवा का अनुमान ना होता,
नित नयी नयी दवाओं की जानकारी हम देते हैं,
उसी से तो सारे डॉक्टर अपडेट होते हैं,
कम्पनी हमारी नये-नये अनुसंधान करती,
उसी से तो मरीज को एक नयी दवाई मिलती,
दवाओं को कैमिस्ट पर रखवाना भी होता हमारा कर्तव्य,
तभी तो होता है दवाओं के मिलने का प्रबंधन।
समाज सेवा ही मेरी नौकरी का प्रथम ध्येय,
यारो ऐसा ही है कुछ मेरे जीवन का उद्देश्य,
गर निरोगी रहेगा जब हरेक देशवासी,
तभी तो स्वस्थ्य बनेगा हमारा भारतवासी।
कुछ ऐसा ही संकल्प मैंने संजोया है,
स्वस्थ्य भारत का निर्माण में सहयोग देना है।