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भीड़ से अलग

भीड़ से अलग

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कल तक मेरे सपनों को सुन दुनिया सारी हंसती थी

शेख चिल्ली की दुम हो कहकर

कितने ताने कसती थी


मैने किसी से कहा न कुछ भी

केवल लक्ष्य पे ध्यान रखा

जान फुक कर कर्म किया और सबका मैने मान रखा


कितनी ही बाधाएं आई सब से मै टकराया था

सब्र का फल मीठा होता है

सबने यही सिखाया था


अगर लगन सच्ची हो तो बन जाते है सेतु जल पर

इतिहास वही बनाते हैं जो पाव रखे अनल पर


मैने भी संघर्ष किया और

भीड़ से अलग पहचान रखी

धार कलम की तेज रखी और अपना एक स्थान रखी


सम्पूर्ण हुआ सपना मेरा भी

एक कलमकार बनने का

साहित्य जगत में नाम हुआ और साहित्यकार बनने का।


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