चलो, वहां चलते हैं
चलो, वहां चलते हैं
बड़ी खुदगर्ज है ये दुनिया यहां मतलब की दरकार है
छल कपट का बोलबाला है
बेईमान, भ्रष्टों की सरकार है
संवेदनहीन लोग यहां रहते हैं
हर कदम अहसास कुचलते हैं
ईर्ष्या, द्वेष, नफरतों के बाजार में
दिल के घाव सरेआम बिकते हैं
यहां आसमां से ऊंचा अहम है
इंसानियत केवल एक वहम है
एक से बढ़कर एक घाव देते हैं
दीन दुखियों तक पर ना रहम है
प्यार के जानी दुश्मन हैं यहां
अभावों में डूबता बचपन है यहां
मौत के सौदागरों की ठोकरों में
जिंदगी को तरसता मन है यहां
आबोहवा भी विषैली है यहां की
हर जुबान भी कसैली है यहां की
औरों की तो क्या कहें, अपनों की
हर चाल भी पहेली है यहां की
चलो , कहीं और चलते हैं
जहां प्यार ही प्यार पलते हैं
जहां लोग मतलब के लिए नहीं
मदद के लिए सबसे मिलते हैं
ऐसी एक दुनिया बादलों के पार है
वहां पर असत्य का ना कारोबार है
संवेदनाओं का सागर लहराता है वहां
बस, ऐसी दुनिया ही अपना घर संसार है।

