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Kanchan Jharkhande

Abstract

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Kanchan Jharkhande

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चक्रवियु में वनिता......

चक्रवियु में वनिता......

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आगाज़ करूँ मैं वर्तमान प्रलय का

सच मानो चक्रवियु हैं जैसे कोई

धसी पड़ी हूँ दलदल जैसे

कुछ सच का कैसे सामना करूँ।


रूठी पड़ी हूँ लकीर ऐ किस्मत से

या फिर कोई एहसास लिखूँ

आ ही गया फिर द्वि पक्ष का समय

सम्मान करूँ की प्रहार करूँ


सम्मान करूँ फिर सब कुछ छुटा

प्रहार करूँ तो जगमन रूठा

नींव रखी तो नइया डूबी

सुर्ख छेड़ा तो रेत भी रूठी


आसमान कहे तू धरती हो जा

भूमि मेरा साथ ना देती

गढ़ जाऊँ या उड़ जाऊं मैं

किस किस पर फिर मर जाऊं मैं।


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