चितवन
चितवन
वयःसंधि में एक बार,
किसी को हो गया था, मुझसे प्यार।
मुझे पसंद नहीं था तब, यह सब,
सोचा, कि आया होगा कोई नया रोमियो अब;
अपनी खूबसूरत निगाहों से देखा करता था वह एकटक जब।
पर
उस ओर तकते ही झट हट जाया करती थी वह चितवन!
शनैः शनैः
झनझना उठे थे
हृतंत्री के सारे तार,
मुझको भी होने लगा था अब हल्का-हल्का सा प्यार।
पर करती रही मैं अनदेखा,
उस मूक प्रणय को।
लेकिन,
धीरे-धीरे बढ़ रही थी बेचैनियाॅं इस ओर भी।
किसी ने धीमे से छेड़ दी हो मानो कोई रागिणी नई!!
बहुत वर्ष हुए अब उस घटना को,
पर वे निगाहें आज भी
अंकित है अंतस् में कहीं!

