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Akshat Shahi

Abstract

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Akshat Shahi

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चिराग

चिराग

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चिराग जलाता है काफिलों से डरता है मगर

पत्थर के ज़ख़्म का मलहम किया है उसने।  


फूलों को देखता है बाग़ में छूता भी है मगर 

आँखों से चुभन को महसूस किया है उसने।  


घड़ी सा चलता है मुन्तजिर हासिल क्या है मगर 

वक़त के तकाज़े को सलत किया है उसने। 


बोलता है राम याद अल्लाह को किया है मगर  

जिन्दा रहने का यह सौदा किया है उसने।


अभी तो साथ है अगले मोड़ तक ना होगा मगर 

रहने का इंतज़ाम जन्नत में किया है उसने।


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