चिपकी - चिपकी गर्मी में
चिपकी - चिपकी गर्मी में
चिपकी - चिपकी गर्मी में ,
चिपका बदन तेरे नाम किया ,
ओ मेरे साँवारिया तूने ....
यूँही मुझे बदनाम किया।
हर रात तेरी नशीली बनी ,
हर दिन तेरा गुलजार बना ,
तुझे अपने दिल का ही नहीं ,
अपना ज़िस्म का दावेदार किया।
अपना मिलन अधूरा ही सही ,
पर उसमे शोले सी गर्मी है ,
तभी दूर से भड़क कर भी ,
तेरे दिये की लौ जलती है।
चिपकी - चिपकी गर्मी में ,
हल्के से इशारे ने काम किया ,
तेरी बहकती ज़वानी को ....
अपने ज़िस्म का गुलाम किया।
ये इश्क नहीं मरने वाला ,
डूबेंगे इसमे हम दोनो ,
चिपक - चिपक एक दूजे से ,
पा जायेंगे ये जहाँ दोनो।|