चिन्तन
चिन्तन
मैं भूत नहीं, वर्तमान हूँ
भविष्य बनना चाहता हूँ !
यही इच्छा दिल में लिए ,
स्वप्न बुनता रहता हूँ !
जब भी वर्तमान होता है ,
भविष्य में खोया रहता हूँ !
तिनका एक पास नहीं ,
नीड़ की रचना करता हूँ !
ये करूँगा, वो करूँगा ,
कल्पना में खोया रहता हूँ !
वर्तमान मैं जीता नहीं ,
भविष्य बुनता रहता हूँ !
होगी कोई दैवीय शक्ति ,
भविष्य मेरा सुधारेगी !
वर्तमान स्तिथि से ,
वो मुझे उभारेगी !
वर्तमान भी अपना ,
खो देता इस चाह में !
आम था , आम हूँ ,
आम रह गया इस राह में !
भविष्य जब आता है ,
आँखें नहीं मिला पाता हूँ !
टूटता जब तिलस्म तो ,
सच से भय खाता हूँ !
भविष्य के जो स्वप्ने थे ,
वो सारे धूमिल हो गए !
स्वपनो के इस शहर में ,
खुद को अकेला पाता हूँ !
अकेलेपन से उबकर फिर,
भविष्य में खो जाता हूँ !
मैं भूत नहीं , वर्तमान हूँ
भविष्य बनना चाहता हूँ !
भविष्य तो है ऐसी धरोहर ,
जो हाथ कभी नहीं आयी !
जब भी वह आयी ,
वर्तमान ही कहलायी !
वर्तमान में मिले रोटी ,
तो मुझे कोठी चाहिए !
कोठी जब मिले तो ,
रक़म मोटी चाहिए !
तिलस्म का यह शहर है ,
झूठ की दीवारें हैं !
स्वपनो के इस महल में ,
'शकुन' मैं ख़ुद से भय खाता हूँ !
वर्तमान तो जीता नहीं ,
भविष्य में खो जाता हूँ !!