चिंगारी
चिंगारी
चिंगारी वह पर फैलाए,
बैठ गई छप्पर के ऊपर,
तम देख वह चिंतित,
आलोक लाई थी।
तेल नहीं था, तम का साया,
उस घर में ही रोशन छाया,
जल गया वह दीपक,
जो जल न पाता था।
कूप भी है वह जल गया,
जो जल न देता था,
जल गया वह दीपक
जो जल न पाता था।
ज्ञान दे सकी पोथी जब न,
अग्नि में अपने प्राण समाया,
कुतरों में भी अक्सर जो,
कुछ ज्ञान देती थी।
घर के बूढ़े-बच्चों में,
वह तम का साया था,
अग्नि ने उनके प्राण निकाले,
शोषण-दमन से प्राण बचाए।
जगमग करती रोशन होती,
‘देह’ जल रही है।
जगमग करता रोशन होता,
‘गेह’ जल रहा है।
कंकाल जो कंगाल थे,
दो दिन से दाना न खाया,
चूल्हा आज फिर न जलता,
चिंगारी ने आग लगाई।
चिथड़े जो लपेटे रहते,
प्राण गए चिथड़े न पाया,
कफ़न बिना ही,
दाह-संस्कार हो रहा है।