चीरहरण
चीरहरण


तू भी चोर है मैं भी चोर हूं,
फिर काहे को करे इतना शोर ?
मिल बांटकर खाएंगे माल
बाजुओं में जिसका जितना जोर ।।
यह तो सरकारी माल है भाई
जितना चाहे उतना लूट,
सब कुछ जायज है यहां
जब मिल जाए जनता से वोट ।।
सत्य की आवाज को दफना कर
विजई हो रहा है झूठ,
हर गुनाह फाइलों में बंद हो जाते हैं,
जब जेब में आ जाए गांधी जी की नोट ।।
क्षमता की प्रभाव से प्रभावित हो रहा है
साधारण जनता की मौलिक अधिकार,
अनाज उगाने वाले भूखा सोए और
करोड़पति ऋण के पैसा लेकर फरार ।।
तू तू मैं मैं चलते हैं सिर्फ
गणमाध्यम और संसद के अंदर,
बंदर की तरह करते हैं उछल कूद
मौसम की तरह भी होते इधर से उधर ।।
हार जीत की आपसी रंजिश से
भारी कीमत देश को झुकाना पड़े,
कहां है बापू के रामराज्य ?
जहां भाई के खातिर भाई राज सिंहासन छोड़ें ।।