छुट्टियों में मस्ती भरा बचपन
छुट्टियों में मस्ती भरा बचपन
समय था बचपन का,
बच्चों की मस्ती भरी टोली का,
इशारों इशारों में आज किस को नचाना है।
गर्मी की छुट्टियों में मौज मनाना है।
सब संग मौजमस्ती में रंग जाना है।
आज बलि का बकरा किसको बनाना है।
फिर पूरी मस्ती के साथ मौज मनाना है।
कभी-कभी तो हम भी इसका शिकार हो जाते थे।
आपस की मस्ती में कभी हम भी उनके झांसे में आ ही जाते थे ।
मगर जो भी कहो समय बहुत प्यारा था
सब समय से न्यारा यह बचपन का प्यारा साथ था।
अपना क्या खुशमिजाज मस्तीखोर होते थे।
फिर कितना हंसते कि हंसते-हंसते आंखों में पानी आ जाता था ।
आज वे सपने सपने ही रह गए।
आज तो हर रोज है छुट्टी।
मगर दिनचर्या है वैसी की वैसी।
भले संडे हो या मंडे रोज उठकर वही काम करना है।
छुट्टी क्या होती है वह तो हम भूल ही गए हैं।
क्योंकि रोज ही छुट्टियां होती हैं।
ग्रहणी को कभी छुट्टी नहीं मिलती है।
तो क्या छुट्टियों की मौज मनाएं।
हां बचपन के दिन कभी याद आ जाते हैं तो मन खुश हो जाता है।
सब छूट ही गया है।
मगर आज वापस से छुट्टियों में मस्ती करने का मंजर याद आ गया है।
और मन खुश खुश हो गया है।
सच है जिस समय जो मिल जाए वह मस्ती आप कर लो तो अच्छा है।
मस्ती भरा समय कब बीत जाता है।
कुछ पता नहीं लगता है।
स्कूल कॉलेज की वे निर्दोष मस्तियां आज हम को ढूंढे भी नहीं मिलती हैं।
अब तो हम उनको याद कर करके ही खुश हो लेते हैं।