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Goga Khullar

Abstract Drama

4.0  

Goga Khullar

Abstract Drama

छोटी छोटी ख़ुशियाँ

छोटी छोटी ख़ुशियाँ

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एक दिन मैं बैठा था अपने घर की चबूतरे पर 

और वही

पास में पड़ोस की दो साल की बच्ची रो रही थी ।


मेरे मन में विचारों की गोल मेज़ कॉन्फ्रेंस चल रही थी ।

नतीजा शायद आज़ादी के समय जैसा ही होने वाला था ।


अपने परेशान भाई को दिया पैसा वापस नहीं आने

की समस्या।।


 दीदी के ससुराल से लौट आने का दुख ।

अपने दोस्त की नई चमचमाती कार की जलन ।

और अपने बाॅस की आलीशान कोठी के

उदघाटन का ग़म ।।


कितनी चीजें थी जिन पर मुझे गम्भीरता से

विचार करना था ।


पर ये नादान क्या समझेगी

इसका तो एक खिलौना गिर गया है ।

और वो ही है इसके रोने का कारण  

ये ज़िम्मेदारी नहीं समझती ।।


ले तेरा खिलौना वापस और चुप हो जा, 

और मुझे गम्भीरता से विचार करने दे ।


मैंने उसका खिलौना उसे गुस्से से उठा

कर दे दिया ।


और वो खिल खिला कर हँसने लगी ।

मैंने समझा कि काश मुझे भी कोई ऐसा ही

कह दे ।

कि ले तेरी इच्छा पूरी कर दी ।।


पर क्या मैं वो सब पाकर खिल

खिला पाऊंगा ।


अपने भाई से पैसे वापस पाकर ।

या बड़ी कार और बड़ा घर लेकर ।

या अपनी दीदी को उसकी मर्जी के

खिलाफ ससुराल भेजकर ।


सोचता ही रह गया बस ।।


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