छोटी छोटी ख़ुशियाँ
छोटी छोटी ख़ुशियाँ
एक दिन मैं बैठा था अपने घर की चबूतरे पर
और वही
पास में पड़ोस की दो साल की बच्ची रो रही थी ।
मेरे मन में विचारों की गोल मेज़ कॉन्फ्रेंस चल रही थी ।
नतीजा शायद आज़ादी के समय जैसा ही होने वाला था ।
अपने परेशान भाई को दिया पैसा वापस नहीं आने
की समस्या।।
दीदी के ससुराल से लौट आने का दुख ।
अपने दोस्त की नई चमचमाती कार की जलन ।
और अपने बाॅस की आलीशान कोठी के
उदघाटन का ग़म ।।
कितनी चीजें थी जिन पर मुझे गम्भीरता से
विचार करना था ।
पर ये नादान क्या समझेगी
इसका तो एक खिलौना गिर गया है ।
और वो ही है इसके रोने का कारण
ये ज़िम्मेदारी नहीं समझती ।।
ले तेरा खिलौना वापस और चुप हो जा,
और मुझे गम्भीरता से विचार करने दे ।
मैंने उसका खिलौना उसे गुस्से से उठा
कर दे दिया ।
और वो खिल खिला कर हँसने लगी ।
मैंने समझा कि काश मुझे भी कोई ऐसा ही
कह दे ।
कि ले तेरी इच्छा पूरी कर दी ।।
पर क्या मैं वो सब पाकर खिल
खिला पाऊंगा ।
अपने भाई से पैसे वापस पाकर ।
या बड़ी कार और बड़ा घर लेकर ।
या अपनी दीदी को उसकी मर्जी के
खिलाफ ससुराल भेजकर ।
सोचता ही रह गया बस ।।