छोटा सा ख़्वाब
छोटा सा ख़्वाब
तुम्हारे तलवों की,
खाई से लेकर,
शूली हाथों के,
वात्सल्य लम्स तक।
इतना तो,
कठिन नहीं,
फिर भी एक सफर,
पे जाना तो होगा।
तुम्हारा पारदर्शी,
पथरीले पावन प्रेम,
अनुभवी नेत्रों में हमेशा,
आशा की लौ और,
बिना लड़खड़ाये,
चलता तुम्हारा विश्वास।
मेरे लिए बनता है,
प्रेरणा का एकमात्र स्रोत,
ऐसे समय में जब,
समस्त वातावरण में,
छा जाता है,
भयानक अंधकार।
पथ में चलते-चलते,
घिर आती है रात,
तुम्हारा प्रज्जवलित,
दीपक दिखता है।
सामने तुम्हारा,
स्वेद सुसज्जित शरीर,
कराहते जोड़ों को,
सुन यकायक।
पलकों के परकोटे,
खुल जाते हैं,
मेरी चेतना लौट,
आती है इस पार।
जैसे तुम सुलझा लेती,
उलझे केशों को,
पीड़ा सहकर,
हर समस्या का हल,
इतना आसानी से तो,
नहीं कर पाउँगा।
फिर भी कोशिश,
करते रहना होगा,
क्योंकि जल्दी से इस,
सफर को ख़त्म कर,
दूसरे पे भी जाना तो,
होगा ना, माँ।