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सफ़र

सफ़र

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बीच सफर, बावला ये मनवा रे

बहक ना बहक ना, कहती है मंजिल ।


तू डर ना मर ना, लगाये जा नारे

बेरहम है ये, बस चलता जा मंजिल ।


शाम को ख़्वाब तले, अलसुबह पैर जले

तू रक्त से अपने नहलाये जा मंजिल ।


फूलों से दिलजले,, काँटो से अलाव जले

होठ को चीर के, सहलाये जा मंजिल ।


ये तन्हाई के सितम, ये गमों का डेरा

खाके हार, डकारे जा मंजिल ।


अंधेरे में सितारे, या सितारों में अंधेरा

चिल्लाये जा मंजिल तू, मंजिल तू मंजिल ।


ये चीख पुकारें या फूल बहारें

तू लिखे जा मंजिल पे मंजिल, मंजिल पे मंजिल ।।


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