छलकते ख़्वाब
छलकते ख़्वाब
मेरे अंतर्मन में ख़यालों की लहरें उछल रही,
जाग उठी मेरी तमन्ना ख़्वाबों को पूरा करने की।
हो गई मैं हकीक़त की नाव पर सवार,
साथ में ली मैंने ख़यालों की पतवार।
कुछ ख़्वाब पहुंचे साहिल तक, तो कुछ छलकते रह गए,
हिम्मत मैंने न हारी, पतवार हाथ से मैंने न छोड़ी।
हौसला है बुलंद, कोशिश अभी भी है जारी,
अब छलकते ख़्वाबों को मुकम्मल करने की है बारी।
