चैन नहीं आराम नहीं
चैन नहीं आराम नहीं
जब तक मंजिल मिल ना जाती चैन नहीं आराम नहीं,
चलता जा रहा हूँ पर पथ का मुझे कुछ आभास नहीं,
बिन मंजिल बंजारा सा मैं इधर-उधर फिरता रहता हूँ,
मुझे कल से आशाएँ किसी को कल पर विश्वास नहीं,
जीवन की कई राहों में जाने कब से मैं भटक रहा हूँ,
कोई निकला थक गया कोई मीलों चला वो थका नहीं,
कहीं तूफानों से तो कहीं तिमिर से मैं उलझ पड़ा था,
सुबह से शाम चला पर जीवन का कोई इतिहास नहीं,
ना कोई संगी ना कोई साथी मेरा अकेला निकल पड़ा,
कहीं लगा जैसे सावन की बहार तो कहीं मधुमास नहीं,
भटक रहा हूँ इधर -उधर जाने मैं किस पथ पर जाऊँ,
कहीं दूर तक फैला समुद्र पर जीवन में अब प्यास नहीं,
जब कोई अपना बुलाता तो लौट भी आते सांझ ढले,
मन का भटका हुआ बटोही हूँ जीवन से कोई आस नहीं,
जब तक मंजिल मिल ना जाती चैन नहीं आराम नहीं,
चलता जा रहा हूँ पर पथ का मुझे कुछ आभास नहीं I I