चाय चोचला
चाय चोचला
देशी नहीं विदेशी हूँ !
चीनी हूँ
गरम चुस्की हूँ,
साझा जिंदगी का वक्त हूँ
मेरे होने से होते हैं किस्से,बात -जज़्बात
मुझे बागान में हरा - भरा छतरी नुमा
देखकर बाग़ - बाग़ हो जाएगा
तुम्हारा मन,
पियोगे, तो फुर्र हो जाएगी तुम्हारी अंगड़ाई,
ठंडी घाटी में पली हूँ
अंगारों पर पकी हूँ
ठंडी में गर्मी है मेरी तासीर
चाय पत्ती हूँ !
नोच ली जाती हूँ
पहाड़ों से उतरती सुबह में
जब ओस की बूॅंदें, चमक रही होती हैं
मेरे कोमल पत्तों पर ;
कभी भी नहीं खिला
मुझमें फूल,
मैं तुम्हारे लत की शिकार हूँ
तुम लती
मेरे चुस्कियों के
लगाते हो होठ से माशूका की तरह,
सोख जाते हो मेरा स्वाद,
फेंक देते हो, छान कर
सड़ जाने के लिए,
किसी गंदी नाली में !
फिर कभी नहीं देखते,
चुन - चुन कर खाते हैं
नालियों में बजबजाने वाले कीड़े !
मैं बाजारू, बिकती हूँ बाजारों में !
तुम्हारे फार्म हाउस की नहीं।