चाँद
चाँद
साँझ तले जब सूरज ढल जाता है
घने बादलों को चिर कर आसमान तले
चाँद जब निकला आता है,
अपनी चाँदनी फिर चारों ओर बिखेरता है,
उस चाँदनी में फिर तारों का
झिलमिलाना क्या खूब नज़र आता है
आसमान की काली चादर में चाँद मोती सा नज़र आता है,
चाँद की शीतल चाँदनी में मन मोहित सा हो जाता है,
शाम ढले चाँद से मुलाकात जो यूँ हो जाती है,
दबी हुई आकांक्षाएँ फिर से जाग उठती है,
चाँद तेरे नूर से सूरज को खलल रहता है,
कभी अधूरा कभी है पूरा तू
कभी सफेद तो कभी सुनहरा है तू
इन्हीं अदाओं की लालिमा ओढ़ तू चला आता है,
खूबसूरत है बहुत तू रात की तन्हाई में
खामोशी से बैठा है आसमान की काली छटाई में
ना तकाज़ा ना नुमाइश किया करते है हम
बस ये चाँद
तुझे देख कर आगे बढ़ने की आजमाइश
किया करते है हम
देकर अपनी रोशनी अंधेरी राहों में
हम सफर तू बन जाता है,
कहते है, लोग चाँद में भी तो दाग होता है,
इस आरोप पर तुझे ना कभी अफसोस होता है,
सफेद ओढ़नी ओढ़े फिर हर रोज़ तू निकल आता है,
उदास मन को जीने की इच्छा फिर दे जाता है।