चाँद की रोशनी
चाँद की रोशनी
आज सुबह चाँद दिखा खिड़की से
बहूत तेज़ था उसमें
जैसे सूरज की किरणो से घिरा हुआ एक पर्दा
जो मैं चाहती थी कभी ना खुले
उस आसमान में जैसे एक दिया सा
जो में चाहती थी कभी ना बुझे
पर जैसे घड़ी चल रही थी
समय के साथ अंधेरा उजाले में बदल गया
चाँद का कोई ज़ोर ना चला
जाना था उसको वो चला गया
पर सूरज की किरणो ने मुझे दिलासा दिया
की फिर चाँद आएगा रात में
वही रोशनी के साथ जिसमें एक टूटते तारे
को देखकर दुआ करूँगी की हर घडी हर एक ज़िंदगी में
रोशनी की किरण बनाए रखना!