चांद - चकोर
चांद - चकोर
बर्फ के गोले जैसा चांद हर पूनम की रात निकल के आये
दिल में लिए आस प्यारी के चकोर उससे मिलने आये।
मिलन की आस में वो जलता पिगलता हर रात
पर चकोर से अपने ना हो पाती उसकी मुलाकात।
कटकर आधा होगया कोई नहीं है उसके साथ
फिर भी बड़ा वो सुंदर लगता है हर चौदवीकी रात।
सूखकर कांटा होगया है, पिघल के होगया है तार
अब तो आकर मिल लो चकोर दिन बचे हैं सिर्फ चार।
विरह वेदना में पिघल गया चांद, होगया अंबर में लुप्त
इधर उसिकी प्रेम उपासना में चकोर है धर्ती पे विलुप्त।