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umme salma

Abstract

3.6  

umme salma

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जवाब देने का नै

जवाब देने का नै

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आवाज़ देती हैं,

मगर जवाब देने का नै

कई सवाल करती हैं,

मगर जवाब देने का नै।


कभी हँसती-हँसाती हैं,

कभी खिल-खिलाती हैं

तुम पलटकर मुस्कुराने का नै।


कभी रोती बिलखती

कभी फ़रियाद करती हैं

इनके आँसू पर पिगल जाने का नै।


भोले बनकर ये लपेट लेती हैं 

इनके बातों में आने का नै।

हुस्न के जाल बिछाने में ये माहिर हैं 

इनके जाल में फँस जाने का नै।


कभी चीखती-चिल्लाती,

कभी गुस्सा दिलाती हैं

तुम जोश में होश खोजाने का नै।


सुनसान गलियों में अकसर

ख़ूबसूरत बालाएं मंडराती हैं

भूल कर भी किसी को बुलाने का,

किसी के साथ जाने का नै।


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