चाँद बड़ा बातूनी है
चाँद बड़ा बातूनी है
ये मेरा दिल जो चाहेगा तो मैं इकरार कर लूंगा,
मिलेगा ग़र कहीं सच्चा तो मैं भी प्यार कर लूंगा,
वो गंगा की तरह मिलने को बस इक बार राजी हो,
तो मैं खुद को कभी संगम कभी हरिद्वार कर लूंगा।
लगे गोपी के जैसी तू, ये दिल गोपाल हो जाये,
होकर प्रेम में विह्वल कुछ ऐसा हाल हो जाये,
उठे अनुराग उर में दीप्त होकर प्रीति का ऐसा,
मरुथल में भी मन शीतल हो नैनीताल हो जाये।
है जो पत्थरों में जज़्ब हर वो राज बोलेगा,
जो तब न कह सका था वो आज बोलेगा,
शाहजहाँ दीवाना था किस क़दर प्यार में,
मुमताज चुप रहेगी पर वह ताज बोलेगा।
तेरे इश्क में पड़कर दिल की पीर हो गई दूनी है,
तुझ बिन ऐसा लगता जैसे दुनिया सूनी-सूनी है,
दिन में याद सताती है तो रात को नींद नहीं आती,
सूरज गुमसुम सा लगता है चांद बड़ा बातूनी है।
ज़ख्म अपनों से हमको मिले इस क़दर,
स्याही भी अब कलम की गरल हो गई।
पीर की झील जो थी अभी तक जमी,
ताप धोखों की पाकर तरल हो गई।
भावना उर में ऐसी जगी क्या कहूँ,
शब्द मिलते गए और ग़ज़ल हो गई।
तुमको पा करके मुझको लगा इस तरह,
ज़िन्दगी थी कठिन अब सरल हो गई।