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Kavi Devesh Dwivedi 'Devesh' (कवि देवेश द्विवेदी 'देवेश')

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Kavi Devesh Dwivedi 'Devesh' (कवि देवेश द्विवेदी 'देवेश')

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माँ

माँ

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आज नहीं जो हो पाती है,

बेशक कल हो जाती है।

माँ जब साथ में होती है,

हर मुश्किल हल हो जाती है।

बस मेहनत की रोटी खाना,

कह हाथ फेरती है सिर पर।

हर बूँद पसीने की माथे की,

गंगाजल हो जाती है।


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माँ न रही हो पूज्य जगत में

ऐसा कोई दौर नहीं,

माँ के शीतल आँचल जैसा

दिखता कोई ठौर नहीं,

लाखों रिश्ते मिल जायें पर

बच्चे करते गौर नहीं,

उनकी खातिर माँ से बेहतर

दुनिया में कोई और नहीं।


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माँ जन्म देती है सन्तान को 

करती है भरण-पोषण 

आचरण में ढालती है उत्तम संस्कार

चूमती है ललाट, देती है आशीष 

घिस देती है माथा टेक-टेक

देवालयों की चौखट के पत्थर 

करती है प्रार्थना उसके दीर्घायुष्य की 

बाँधती है मन्त्रपूत यन्त्र भुजा पर

कुशलता के लिए 

उसकी इस निसर्ग-ममता का ऋण

नहीं चुका सकती सन्तान 

वह नहीं हो सकती उऋण

जीवन भर माँ से।


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बहुत खुश थी वह 

उस दिन 

जब उसे पुत्ररत्न की 

प्राप्ति हुई थी 

फूल की थाली बजवायी थी उसने

बतासे बँटवाये थे 

पर आज...

सिंहनी की कोख से 

सियार के जन्म की 

कहावत को 

चरितार्थ होते देख रही है 

स्वयं अपनी आंखों से 

ठोंक रही है माथा 

दोनों हाथों से।


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रही सोचती वह मरण सेज लेटे,

हूँ बेहाल शायद अब आयेंगे बेटे,

पथराई आँखों में ये आस लेकर,

माँ चल बसी दर्द दिल में समेटे।


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ना जाने कितनों ने माँ पर

क्या-क्या नहीं है लिख डाला,

मुझको तो बस 'माँ' लिख देना

महाकाव्य सा लगता है।



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