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चाँद और सूरज

चाँद और सूरज

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हुआ तो कभी सूरज भी चाँद का नही,

लेकिन खुद जल के,

चाँद को चमकाता है,

प्यार उसका भले ही एक तरफा हो,

लेकिन वफ़ा कितनी नज़ाकत से

निभाता है।


साँझ होते ही

तारों की चादर ओढ़ता है,

अपनी रात उस चाँद के नाम

कर जाता है,

शायद लफ़्ज़ों में

कभी बयां ना किया हो,

लेकिन प्यार तो

यूँ भी खूब जताता है।


चाँद को शायद

उसका वजूद नही मालूम,

इसलिए ही इतना इतराता है,

दूर बैठा सूरज वो,

बस उसकी हिफाज़त किए जाता है।


कहाँ आसान ऐसी मोहब्बत,

जिसके बदले,

वो कुछ ना पाता है,

दुनिया ख्वाब देखती है,

चाँद तारे तोड़ने के,

वो टूटा दिल ले कर भी,

उस चाँद के ख्वाब सजाता है...।


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