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Alok Singh

Romance

3  

Alok Singh

Romance

चाहत

चाहत

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जब सब खोने को है तो

सब पाने की चाहत है,

जब रात होने को है तो

जागने की चाहत है


आवारा मन है तो दिल सोचता है

कटी पतंग को अब,

उड़ने की चाहत है


कभी आओ हवाओं संग,

मेरे दामन में बिखर जाओ

कि बिखरे फूलों को अब

महकने की चाहत है


कभी प्यासा सागर  

तो कभी प्यासा दरिया

रहूँ मछली बन नदियों में

मगर अब समंदर की चाहत है


उजालों को भी ढकना है

उजालों की ही चादर से,

अँधेरे रास आते हैं

मगर उजालों की चाहत है


कभी हिचकी बन

तो कभी धड़कन बन

साथ रहते हो

मैं गुमशुदा कब से,

अब तनहा रहने की चाहत है


सम्भलना भी है हिस्सों में ,

बिखरना भी है हिस्सों में

इक जुट हूँ तो ज़िंदा हूँ       

पर अब टूटने की चाहत है


मुझे अब कब बुलाती है

तेरे बांगों की तितलियाँ

इशारे तेरी चाहत के ,

मुझे तो अब तेरी चाहत है



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