चाहे श्याम कहूं या राम
चाहे श्याम कहूं या राम
चाहत मुझको ऐसी लगी,चाहे श्याम कहूं या राम।
मालिक सबका एक है, सबअलग-अलग हैं नाम।।
लाख चौरासी भटक-भटक ,
पाया है ये मनुज का धाम।
मत कर तू अभिमान रे बंदे,
रे बंदे मत कर तू अभिमान।
सबके लिए वो एक हैं,चाहे खास हो चाहे आम।
चाहत मुझको ऐसी लगी, चाहे श्याम कहूं या राम।।
त्रेतायुग के हैं प्रभु राम चंद्र जी,
द्वापरयुग के प्रभु घनश्याम जी।
दशावतार की महिमा है न्यारी,
दिल से इसको है गाना जी।
अलग-अलग हैं नाम प्रभु के, अलग-अलग हैं धाम।
चाहत मुझको ऐसी लगी, चाहे श्याम कहूं या राम।।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

