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संजय कुमार

Abstract

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संजय कुमार

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चाह हमारी।

चाह हमारी।

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जिस तरह चांद है,चांदनी के लिए

है मेरी जिंदगी, बस तुम्हारे लिए


तुम मिले तो मुझे एक पल के लिए

फिर ये जीवन दुबारा नहीं चाहिए


है रुका चांद ये चांदनी के लिए

वर्ना तारों की महफ़िल नहीं चाहिए


नभ से वसुधा तक तुम्हीं तुम हो

और नजर नाए कोई दूजा मुझे।


आंचल में अपने रखलो हमें

बस चाह हमारी है, इतनी सी।


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