चाॅंद/सूरज
चाॅंद/सूरज
है रात का पहर
उम्मीदों की चाॅंदनी के साथ
खूबसूरत चाॅंद का कहर ,
हर बात का नियम बंधा है
एक-एक लम्हां
अपने काम में सधा है ,
रोज़ रात होती है चाॅंद निकलता है
ये भी ज़िंदगी की तरह
थोड़ा घटता बढ़ता रहता है ,
एक संदेश छिपा है इसके घटने बढ़ने में
हालात एक से नही होते
लगे रहो कुछ ना कुछ करने में ,
सबेरा भी होता सूरज भी निकलता है
इसकी रौशनी से
संपूर्ण जगत निखरता है ,
इसके तेज से शक्ति संचारित होती है
चाॅंद की ख़ास मौकों पर
किंतु इसकी तो रोज पूजा होती है ,
जीवन में सुख-दुख बढ़े-घटें चाॅंद की तरह
और सबकी किस्मत का सितारा
चमके हमेशा सूरज की तरह ,
क्योंकि ये तो सूरज है किसी भी कोने अतरे से
अपना उजाला कण-कण में फैलायेगा
हर हाल में चमकेगा बादल के हर क़तरे से ।