ब्यक्त हो रहे हैं
ब्यक्त हो रहे हैं
प्रेम में होना और
प्रेम के साथ सक्रिय होना
दो भिन्न भिन्न बातें हैं।
अब देखो न हम प्रेम में हैं
और सक्रिय होने की कोशिश में हैं,
कितनी मुश्किल है
कितनी दुश्वारी है,
एक कदम चलना प्रेम के साथ
जहाँ है ,जैसा दिखता है वो
वैसा है कहाँ?
लगता है किसी अनजान दिशा में
अनजान लोगों के बीच चलना है,
और यह बताने वाला भी नजर में नहीं है कि
मन्जिल की तरफ ही तो बढ़ रहे हैं।
और यकीन मानो चलने में विश्वास है
और चल भी रहे हैं।
ठीक ठीक,मन्जिल की ओर
और जब यात्रा बोझिल होने लगती है
तो याद में चले जाते हैं प्रेम में होने की।
वही तुम्हारे कदमों के निशान पर
रखते हुये कदम
तुम्हारी आवाज में मिलाते हुये अपनी आवाज
हर पल तुम्हारे पास होने के
अनगिनत बहानों को ढूंढते हुए और
फिर तुम्हारी नोटिस,
नोटिस में तुम्हारा रेस्पॉन्स
रेस्पॉन्स में प्रेम का इजहार
फिर डूब जाना प्रेम में।
इतने भर से एक नई ऊर्जा मिलती है
राहत मिलती है और
यात्रा की बोझिलता सरलता में तब्दील हो जाती है।
जब पूरी दुनिया खोयी हुई होती है
प्रेम की याद में
हम प्रेम के सक्रिय हो उठते हैं
और चल पड़ते हैं एक कदम।
प्रेम की सार्थकता को रेखांकित करते हुए
और लगता है ये
अब हमारे और तुम्हारे बीच से निकलकर कर
हमारे और दुनिया के बीच है,
हमारे और प्रकृति के बीच है,
हमारे और हमारी सभ्यता के बीच है,
और हम प्रेम में चलते हुए
प्रेम से व्यक्त होते हुए
एक नयी कहानी बुन रहे हैं
एक नई कहानी बन रहे हैं।
कितनी संतुष्टि है
ये नयी कहानी बुनते हुए
नयी कहानी बनने में।