बूढ़ी किताब
बूढ़ी किताब
शिव कुमार बटालवी
हिंदी अनुवाद: मोहनजीत
मैं, मेरे दोस्त...
तुम्हारी किताब पढ़ कर,
कई दिन हो गए हैं
सो नहीं सका !
मेरे लिए यह किताब बूढ़ी है
इसके शब्दों के हाथ कांपते हैं
इसकी हर पंक्ति सठियाई हुई है;
यह जल के बुझ चुके
अर्थों की आग है,
यह मेरे लिए शमशानी राख है !
मैं बूढ़े हांफते
इसके शब्द जब भी पढ़ता हूँ,
और झुर्रियाए
वाक्यों पर नज़र धरता हूँ,
तो घर में देख कर
इस शमशानी राख से डरता हूँ;
और इसके बुझ चुके
अर्थों की आग में जलता हूँ।
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जब मेरे घर में यह
बूढ़ी किताब खांसती है,
हांफती और ऊँघती
अर्थों का घूंट मांगती है,
तो मेरी नींद के
माथे पर रात कांपती है !
मुझे डर है
यह बूढ़ी किताब
मेरे ही घर में
कहीं मर ना जाए
और मेरी दोस्ती पर हर्फ़ आए।
इसलिए मेरे दोस्त,
मैं यह बूढ़ी किताब लौटा रहा हूँ -
अगर ज़िंदा मिल गई
तो एक ख़त लिख देना,
और अगर रास्ते में मर गई
तो ख़त भी ज़रूरी नहीं;
तुम्हारे शहर में भी
क़ब्रों की कोई कमी नहीं !
मैं, मेरे दोस्त...
तुम्हारी किताब पढ़ कर
कई दिन हो गए हैं
सो नहीं सका !!