बूँदें...☔
बूँदें...☔
बरसती हैं बूंदें घिर आई हैं घटाएं
चलो इसी बहाने कुछ यूं ही गुनगुना लें
रिमझिम सी फुहारें पड़ने लगी दरख़्तों पर
पंछियों से कहो घोंसलों में खुद को कहीं छुपा लें
काग़ज़ की कश्ती चलो बना कर ए -दिल
फिर से इक बार खुद को बच्चा ही बना लें
मुस्कुरा कर तकते हो जो आसमां को तुम
बूंदों की आड़ में आँखों से पानी बहा दें।
घिर जाने दो घटाओं को आसमां में अब
सारे ग़म भुलाकर फिर से चलो मुस्कुराएं।