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manish shukla

Romance

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manish shukla

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बुढ़ापे की सनक

बुढ़ापे की सनक

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कभी ज़ोर से चिल्लाना

कभी ख़ुद ही बड़बड़ाना,

बेबात रूठ जाना

फिर खुद गले लगाना,

ये वक्त बेनज़ीर है,

बुढ़ापे की सनक,

भी अजीब है...।


जिद से छकाना,

बच्चों सा हठ दिखाना,

प्यार के अहसास से

मन का मचल जाना,

कभी पैर को थिरकाना

फिर डांस नया दिखाना,

ये प्यार बेनज़ीर है,

बुढ़ापे की सनक भी अजीब है।


बीती बातें गुनगुनाना

रिश्तों को फिर निभाना,

सबका ध्यान रखना

पर खुद को भूल जाना,

कभी कल की बात करना,

कभी आज से डर जाना,

ये वक्त बेनजीर है,

बुढ़ापे की सनक,

भी अजीब है।



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