बुढ़ापे की सनक
बुढ़ापे की सनक
जिंदगी का सच
सुबह आईने में देखा
खुद ही का चेहरा
कितना बदल चूका
मन के भाव आज जवान
चेहरे पड़ी झुर्रियां को
ढांकने की कोशिश
बालों को काला करके
युवाओं की होड़ में
शामिल होने की
बुढ़ापे की सनक में
थक चुके कई इंसान
ऐसा लगता बुजुर्गी का
मानो कोई इम्तिहान हो
आवाज में कंपन
घुटनो में दर्द
मानों सब खेल मुंह
मोड़ चुके
बतियाने को रह गया
अनुभवों का खजाना
और फ्लेस बैक यादों का
आईने में अकेला निहारता चेहरा
और बुदबुदाता
सभी को तो बूढ़ा होना ही
एक न एक दिन
युवा बात करे पल भर हमसे
भागदौड़ की दुनिया से
हटकर
मन को सुकून
मिल जायेगा
अकेले बतियाने और
आईने में चेहरे को देखकर
सोचता हूँ
बुढ़ापा
क्या ऐसा ही आता है।