बुरा तो नहीं मानोगी
बुरा तो नहीं मानोगी
सुनो,
बुरा तो नहीं मानोगी अगर मैं कहूँ,
अगर मैं कहूँ की फर्क पड़ता है मुझे,
फर्क पड़ता है मुझे जब तेरे मुस्कुराने की वजह कोई और होता है,
जब तुझे खो देने का ख्याल मुझे अंदर से झंकझोर देता है।
बुरा तो नहीं मानोगी अगर मैं कहूँ,
अगर मैं कहूँ कि तेरे रेशमी गेसुओं को,
भरी दुपहरी में अपनी छाँव बनाना चाहता हूँ,
तुझे गले लगाकर तेरे आगोश में समा जाना चाहता हूँ।
बुरा तो नहीं मानोगी अगर मैं कहूँ,
अगर मैं कहूँ की तेरे गुलाबी होठों का स्पर्श,
मैं अपने होंठों पर महसूस करना चाहता हूँ,
तेरे मख़मली जिस्म की चादर को ओढ़ना चाहता हूँ,
तेरे अश्क़ों को तेरे गालों पर गिरने से पहले पी लेना चाहता हूँ।
बुरा तो नहीं मानोगी अगर मैं कहूँ,
कि तेरे हर एक दर्द में तकलीफ मुझे तुझ से ज्यादा होती है,
जब तेरे पास न होने पर ये आँखें,
छिप छिप के तन्हाई में तेरे लिए रोती है।
बुरा तो नहीं मानोगी अगर मैं कहूँ,
अगर मैं कहूँ फर्क पड़ता है मुझे,
बहुत फर्क पड़ता है जब हर रोज़ मुझे,
उस शाम का इंतज़ार होता है जब हमारी बात होती है,
लेकिन तुझे अब पहले जैसे मेरी फिक्र नहीं होती है।
बुरा तो नहीं मानोगी अगर मैं कहूँ कि फर्क पड़ता है मुझे,
बहुत फर्क पड़ता है,
अब जब तू मुझे छोड़ उसका हाथ थाम लेती है,
जब तू जरूरत पड़ने पर किसी और का नाम लेती है।
फर्क पड़ता है मुझे,
बहुत फर्क पड़ता है मुझे,
जब मेरी सुबह तेरे गुड मॉर्निंग के मैसेज के बिना हो जाती है,
जब तेरे व्हाट्सअप का लास्ट सीन,
मेरे किए तुझे मैसेज के रिप्लाई के बिना बदल जाता है,
जब तेरा इंस्टाग्राम, म्यूजिकली पर पोस्ट डालना,
तेरे लिए मुझसे बात करने से ज़्यादा ज़रूरी होता है,
और तेरी स्टोरीज़, तेरे स्टेटस में मेरा ज़िक्र तक नहीं होता है।
बुरा तो नहीं मानोगी,
अगर मैं कहूँ कि फर्क पड़ता है मुझे,
बहुत फर्क पड़ता है ये जानकर कि तुझे,
मेरे होने न होने से कोई फर्क नही पड़ता,
तेरा दिल मेरे दिल की तरह बेचैन नहीं होता।
बहुत फर्क पड़ता है,
जब तुझे टूट के चाहने के बाद भी,
आखिर में टूट ही जाता हूँ,
जब तुझे पाने की दौड़ में,
पीछे छूट ही जाता हूँ ।।

