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Mohit Chauhan

Drama

5.0  

Mohit Chauhan

Drama

ज़िन्दगी ये कैसी जी रहा हूँ मैं

ज़िन्दगी ये कैसी जी रहा हूँ मैं

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ज़िन्दगी ये कैसी जी रहा हूँ मैं

अपनों से ही दूर हो रहा हूँ मैं।

एक आग दहकती है इस सीने मे

हर दिन उस आग मे जल रहा हूँ मैं।


सामने है सारी सच्चाई लेकिन

सच्चाई से मुँह फेर रहा हूँ मैं।

जानता हूँ मतलब के रिश्ते हैं सारे

फिर क्यों इतना दुखी हो रहा हूँ मैं।


दूसरों की खुशियों का खयाल रखते रखते

कहीं न कहीं खुद को खो रहा हूँ मैं।

न कोई दवा है न कोई इलाज है इस मर्ज़ का

बस अपनी हिम्मत के सहारे लड़ रहा हूँ मैं।


मुद्दतों से हसरत थी जिस चाहत की

आज उसे पाकर भी खो रहा हूँ मैं।

एक अरसा बीत गया है तुम्हें गए हुए

मगर आज भी याद तुम्हें कर रहा हूँ मैं।


एक दिन मुकम्मल होगी मेरी मोहब्बत भी

ऐसा झूठा हसीन ख्वाब देख रहा हूँ मैं।

लाज़मी है मेरा ये हश्र होना क्योंकि

फैसले सारे दिल से ले रहा हूँ मैं।


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