बुलंदियों की कीमत
बुलंदियों की कीमत
हकीकत के पन्नो की सच्चाई,
कुछ और ही है, यह रहनुमाई,
आसान नहीं होता, खुद को लुटाना,
वो बुलंदियों को पाने की कीमत,
कुछ और ही है, यह रहनुमाई,
कभी खुद को, कभी सपनों को अपने,
बेचा तो होगा जरूर तुमने,आखिर,
कुछ और ही है, यह रहनुमाई,
भूले, तुम भी होगे, जब,
इस बुलंदी की कीमत मांगी होगी तुमने, आखिर,
कुछ और ही है, यह रहनुमाई,
कभी पैसा, कभी ज़मीर, तो कभी अस्मत,
भी होगी बिछी इस राह में, आखिर,
कुछ और ही है, यह रहनुमाई,
ना जाने क्यों, बुलंदी की कीमत,
चाहे कुछ भी हो, मगर,
बिकने को तैयार, मिल जाते हैं, खरीददार को,
आखिर, कुछ और ही है, यह रहनुमाई।