बटुआ
बटुआ
पैसों की खनक सर चढ़ कर
बोलती है
पैसा ना हो तो इनसान
अधूरा अधूरा सा लगता है
ज़रूरत इन्सान की
पैसा ही पूरा करता है
आजकल तो इन्सान कम
और पैसा ज़्यादा
बोलता है
सारे रिश्ते नाते रुपए और
सुख सुविधा
के इर्द-गिर्द ही मंडराते हैं
अहमियत इंसान की कम
और पैसे की ज़्यादा
हो गई है
जो ज्यादा धनिक तमाम
रिश्ते नाते
सभी उसके इर्द-गिर्द
वहीं जहांँ निर्धनता एक
शर्म और तनहाई की
गवाह बनती है
पैसों की खनक सर चढ़कर
बोलती है
यहांँ इन्सान नहीं पैसा
पूजा जाता है
आपकी दोस्ती भी
आपकी जेब के वज़न
अनुसार ही
आंकी जाती है
सच पूछो तो रुपयों ने
इन्सान की के क़ीमत को
कम कर दिया है
भौतिकता के युग में
पैसों की खनक सर चढ़कर
बोलती हैं।