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Rajeev Tripathi

Abstract Inspirational

4.5  

Rajeev Tripathi

Abstract Inspirational

बटुआ

बटुआ

1 min
281


पैसों की खनक सर चढ़ कर

बोलती है

पैसा ना हो तो इनसान

अधूरा अधूरा सा लगता है

ज़रूरत इन्सान की

पैसा ही पूरा करता है


आजकल तो इन्सान कम

और पैसा ज़्यादा

बोलता है

सारे रिश्ते नाते रुपए और

सुख सुविधा

के इर्द-गिर्द ही मंडराते हैं


अहमियत इंसान की कम

और पैसे की ज़्यादा

हो गई है

जो ज्यादा धनिक तमाम

रिश्ते नाते

सभी उसके इर्द-गिर्द

वहीं जहांँ निर्धनता एक

शर्म और तनहाई की

गवाह बनती है


पैसों की खनक सर चढ़कर

बोलती है

यहांँ इन्सान नहीं पैसा

पूजा जाता है


आपकी दोस्ती भी

आपकी जेब के वज़न 

अनुसार ही

आंकी जाती है


सच पूछो तो रुपयों ने

इन्सान की के क़ीमत को

कम कर दिया है

भौतिकता के युग में

पैसों की खनक सर चढ़कर

बोलती हैं।


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