बसंत
बसंत
आए हैं ऋतुराज सखी पर मोरे पिया नहीं आए,
आए रे मधुमास सखी पर सजन घर ना आए। रे सखी मोरे.....
सजी धरा धानी चूनर संग कली कली मुस्काए,
बहे बसंती पवन सखी तन-मन में प्रीत जगाए,
रोज सवेरे आम के गंछिया बैठ कोयलिया गाए,
कासे कहूं हुक अपने जिया के कस मनवा बौराए। रे सखी मोरे.....
करते हैं मदहोश सखी अमवा के मंजरिया,
तनिको ना भावे सखी रात के सेजरिया,
सखी व्याकुल नयन मोरे निंदियो ना आए ,
आए रे मधुमास सखी सजन घर ना आए। रे सखी मोरे.....
प्रकृति सजी है आज बनी है दुल्हनिया,
देख ऋतुराज से मिले सजी वो सजनिया,
मानो जस कामदेव आई प्रेम बाण चलाए,
आए रे मधुमास सखी सजन घर ना आए। रे सखी मोरे.....
बढ़े अनुराग प्यास बुझे ना बुझाए रे,
आतुर पपीहा जस मन तड़पाए रे,
इस मधुमास पिया मिलन न आए रे
आए रे मधुमास सखी सजन घर ना आए। रे सखी मोरे.....