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Ruchika Rai

Abstract

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Ruchika Rai

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बसंत

बसंत

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बसंत का आगमन,

नित नूतन उमंग भर।

खिले है हृदय कमल

मिलन को मचलता मन।


बागों में नव कोंपलें खिली,

पीली सरसों झरने लगी,

कोयल की मीठी तान से

संगीत मन में बजने लगी।

फूलों के सुगंध से सुरभित हुआ

घर आँगन और उपवन।

ठहर अभी थोड़ा और ठहर

तेरे साथ को है मचलता मन।


शीत की अकुलाहट छोड़,

चल रही मदमस्त बयार,

हर तरफ बिखरी बासंती छटा,

जैसे छाई हो उमंग बहार।

गेहूँ की स्वर्णिम बालियाँ झूम झूम

तेरे साथ को मचलने लगी।

ठहर अभी थोड़ा और ठहर

तेरे साथ को है मचलता मन।


बसंत का आगमन,

नित नूतन उमंग भर

खिले हैं हृदय कमल,

मिलन को मचलता मन।


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