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Sangita Tripathi

Abstract

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Sangita Tripathi

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बसंत ऋतु

बसंत ऋतु

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देखो आया वो प्यारा बसंत

सज़ा है रंग बिरंगे फूलों से

खिला दिया दिल का हर कोना 

गुनगुना दिये बंद होठ भी 


शाबाब बसंत का कुछ ऐसा 

भूल गए थे जो,कभी वो दिया 

तुम्हारा गुलाब


निकलाआज बंद किताब से 

दिल के पन्ने भी फड़फड़ा उठे 

महक सूखे गुलाब के 

वो भी बसंत ऋतु था 

चढ़ा प्यार परवान था 


पीला एक खिला हुआ गुलाब 

जो तुमने दिया था

इश्क़ के दरिया में बह रहे थे

 

पर थाम लिया डूबने से 

दुनिया की रूसवाँइयों ने।


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