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Sangita Tripathi

Abstract

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Sangita Tripathi

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तनहा सा कोना

तनहा सा कोना

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क़तरा क़तरा अशको को छुपा रखा

दिल का कोई तनहा सा वो कोना


ख़ुद को तराशतीं रही तुम्हें पाने को

एक झूठ से ख़ुद को बहलाते रहे


वो मोड़ भी वही है जहाँ तुम जुदा हुए

उन रास्तों के फ़ासले नापते रहे


जिन राहों पर उम्मीद बाक़ी थी

उन राहों में तुमको खोजते रहे।


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